उड़वारिया। सिस्टम में बैठे कई लोगों में संवेदनशीलता खत्म हो रही हैं। कई बार लगता था आजकल मानवता भी खत्म हो रही हैं।
उड़वारिया के संवेदनशील,जागरूक एवं युवा सरपंच जेताराम चौधरी की रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को क़रीब 3 बजे उड़वारिया ग्राम पंचायत के आदिवासी बहुल गाँव बारी खेड़ा में स्कूल के सामने ही स्थित घरों व झोंपड़ों में तेज आग लगी थी। सूचना पर सरपंच जेताराम चौधरी तुरंत 4 व्यक्तियों को साथ लेकर घटना स्थल पर पहुंचे एवं जाकर देखा तो बाड़ में लगी आग विकराल रूप लेते हुए घरों को चपेट में चुकी थी। मौके पर स्थानीय स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे व अन्य नागरिक आग बुझाने का जतन कर रहे थे।
स्थानीय आदिवासियों की मेहनत व उनकी सहायता से आग पर क़ाबू पाकर गरीबो के घर व झोंपड़े बचाने में सरपंच सफल रहे।
परंतु इस दौरान एक बड़ी विडम्बना की बात यानी संवेदनहीनता की बात सामने आई की बारी खेड़ा स्कूल के सरकारी अध्यापक महोदय अपने कार्यालय से बाहर तक नहीं आए जबकि आग स्कूल गेट से महज़ 30-40 फीट दूरी पर लगी थी। सरपंच जेताराम के अनुसार यह घोर लापरवाही,संवेदनहीनता है साथ ही बच्चों को आग बुझाने को छोड़ दिया और स्वयं मास्टर जी खुद बाहर झांकने तक नहीं आए।
सरपंच के अनुसार सरकारी कर्मचारी से वो भी एक अध्यापक से ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते है , इस सम्बंध में मामला शिक्षा विभाग के अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया है।
कुलमिलाकर लब्बोलुआब यह है कि क्या सरकारी स्कूल के मास्टर जी की एक भारतीय नागरिक के नाते आग बुझाने में सहयोग करने की जिम्मेदारी नहीं थी?
एक संवेदनशील नागरिक, एक अध्यापक की क्या यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वह आग बुझाने में सहयोग करें?
क्या यह सही था कि बच्चों को आग बुझाने के लिए भेजा जाए?
सवाल तो खूब है मगर क्या कोई जवाब होगा?
होना यह चाहिए था कि ऐसे मामलों में हमें एक जिम्मेदार नागरिक के नाते सहयोग करना चाहिए था।
कभी भी छोटे बच्चों को आग बुझाने नहीं भेजना चाहिए।
कभी भी कोई अनहोनी घटना हो सकती थी।
सरपंच जेताराम चौधरी को आदिवासी भाईयों का सहयोग करने के लिए आभार साथ ही मास्टर जी से निवेदन है कि संवेदनशील बने, एक भारतीय होने का फर्ज तो जरूर निभाए।