सिरोही। क्यों पड़ता है पाला ?, पाले के क्या है प्रभाव ? और क्या है उपाय? मौसम विभाग द्वारा आगामी तीन- चार दिवस में तापमान में गिरावट होने की भविष्यवाणी के मद्देनजर फसलों में पाले से नुकसान की आशंका है।
पाले से सरसों, मटर, चना व सब्जियों की फसलों में नुकसान होने की संभावना है।
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार) संजय तनेजा ने बताया कि विगत दिवसों में जिलें में शीतलहर एवं पाला पडनें से अरण्डी, सरसों एवं मुख्यतः टमाटर, पपीता व सब्जियों की फसलें प्रभावित हुई है। तनेजा ने पाले के कारणों एवं बचाव के उपायों को अपनानें की सिफारिश की हैं।
क्यों पड़ता है पाला?
सर्दी के मौसम में जिस दिन दोपहर के पहले ठंडी हवा चल रही हो व हवा का तापमान अत्यंत कम होने लग जाए एवं दोपहर बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। जब वायुमंडल का तापमान 0 डिग्री सेल्सियस या इसके नीचे चला जाता है, तो हवा का प्रभाव बंद हो जाता है। जिसकी वजह से पौधो की कोशिकाओ के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है। इसे ही पाला कहते है।
पाले के प्रभाव
इस मौसम में पाले का सबसे अधिक असर पपीता, आम, टमाटर, मिर्च, बैंगन, मटर, धनिया की फसलों पर हो सकता है। पाले के कारण पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जल जमने से कोशिका भित्ति फट जाती है, कोशिकाओ की दीवारे क्षतिग्रस्त हो जाती है और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) नष्ट हो जाता है। पाला पड़ने की वजह से कार्बन-डाई ऑक्साइड एवं ऑक्सीजन वाष्प की विनियम प्रक्रिया भी बाधित होती है। पाला पड़ने से पौधो की पत्तियां झुलसने लगती है, पौधो के फल व फूल झडने लगते है। फूल झडने से पैदावार मे कमी आती है।
पाले से बचाव के उपाय
किसान भाई फसलों को पाले से बचाने हेतु गंधक के तेजाब का 0.1 प्रतिशत अर्थात एक हजार लीटर पानी में 1 लीटर सांद्र गंधक का तेजाब मिलाकर घोल तैयार करें एवं फसलों पर छिड़काव करें अथवा घुलनशील गंधक के 0.2 प्रतिशत घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मिला कर छिड़काव भी कर सकते हैं । खेत की उत्तर पश्चिम दिशा में जिधर से शीतलहर आती है फसलों के अवशेष, कूड़ा करकट, घास-फूस जलाकर धुंआ करें। पाला पडने की संभावना वाले दिनो मे मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नही करनी चाहिए, क्योकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है। पाले के दिनों में फसलों में सिंचाई करने से भी पाले का असर कम होता है। पाले के दौरान यदि खेत में सिंचाई की हुई हो तो मृदा में नमी होने के कारण ठंडी हवा मृदा की सतह को पार नहीं कर पाती जिससे फसल को नुकसान नहीं होता।
वही यदि सूखी जमीन हो तो ठंडी हवा मृदा सतह को पार कर पादप तक पहुंच जाती है इसलिए पाले से बचाव हेतु फसलों की सिंचाई भी बेहतर उपाय है। सल्फर (गधंक) का छिडकाव करने से रासायनिक सक्रियता बढ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधे को सल्फर तत्व मिल जाता है। चूंकि सल्फर (गधंक) से पौधे मे गर्मी बनती है। इसलिए खेतों में 6 से 8 कि.ग्रा. सल्फर डस्ट प्रति एकड़ के हिसाब से डाल सकते है। सब्जी वर्गीय फसलों को पाले से बचाने के लिए थायोयूरिया 1 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव कर सकते है। यह छिड़काव 15 दिनो मे दोहराना चाहिए। ये उपाय अपनाकर किसान भाई अपनी फसलों को पाले के नुकसान से बचा सकते हैं ।