मण्डार। ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम एक तरफ भाई और बहन के रिश्तों को मजबूती देता है साथ ही इस प्रकार के कार्यक्रम से गांव में सामाजिक समरसता में भी वृद्धि होती हैं।
गांवों में ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रमों की मची है धूम, सामाजिक समरसता की बह रही है धारा। यह ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव का अच्छा सूचक हैं। इस प्रकार के ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम के माध्यम से वैसे तो हर जाति-वर्ग में होली से पहले और होली के बाद कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। लेकिन मण्डार और आस-पास के गांवों में स्थानीय कलबी जाति के लोग विशेष रूप से इस प्रकार के आयोजन करते हैं। इस कार्यक्रम के तहत बच्चें के ननिहाल पक्ष से नाना-नानी, मामा-मामी और उस परिवार से जुड़े लोग अपनी बेटी के घर उसके ससुराल में उसके बच्चें के लिए ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम के तहत (मायरा) मामेरा भरते है स्थानीय शब्द है मामेरा इसका मतलब है कि बच्चें के मामा आदि बच्चें की ढूंढ को लेकर अपनी बहिन को यथासंभव अपनी ओर से भेंट देते हैं। फिर वह चाहें आभूषण हो या नकद राशि या कपड़े आदि। इस कार्यक्रम के तहत ढूंढ वाला परिवार गांव में एक सामाजिक ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम भी करता हैं।
जिसमें हर जाति, वर्ग के मित्र आदि शामिल होते हैं। यह ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम एक तरफ भाई और बहन के रिश्तों को मजबूती देता है साथ ही इस प्रकार के कार्यक्रम से गांव में सामाजिक समरसता में भी वृद्धि होती हैं। आज वेलाराम कलबी परिवार द्वारा ढूंढ़ोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया। आयोजित कार्यक्रम में मण्डार सरपंच परबतसिंह देवड़ा, गुंदवाड़ा सरपंच वगताराम, हरजीराम, मफाराम, मोटाराम, मावाराम, नानजीराम, मनराराम सोरड़ा, भूराराम प्रजापत, मोतीराम, डायाराम सोरड़ा, मोतीराम, रमेश कुमार, शान्तिलाल चौधरी, नगाराम, करमीराम, जितेंद्र कुमार, रमेश कुमार सोरड़ा सहित कई ग्रामीण मौजूद थे।