मंडार। क़स्बे एवं आस-पास के कई गांवों में कई किसानों के खेत में खड़ी मूंगफली की फ़सल में रोग लग गया हैं। जिसकें कारण तना काला पड़ रहा है एवं जड़ में गलन हो रहा हैं। मूंगफली की फ़सल खराब हो सकती हैं। इस पर हमनें कृषि सहायक अधिकारी पूराराम चौहान स भी बात की उन्होंने बताया कि यह रोग मूंगफली में बीजोपचार नहीं करने के कारण होता हैं।
आइए जानें फसलों में क्या होता है रोग क्या है उपचार?
कॉलर रॉट/जड़ गलन/तना गलन यह रोग मुख्यतः मूंगफली, तिल और टमाटर इत्यादि में होता है। रोग उत्पन्न करने वाले कारक मृदा में रहते हैं। यह रोग बीज व अंकुरित पौधों को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाता है, जिससे कि खेत में पौधों की संख्या में काफी कमी हो जाती है। ग्रसित बीज को मृदा से निकालकर देखने पर बीज पर काले कवक दिखाई देते हैं।
मृदा और बीज से उत्पन्न होने वाले रोगजनकों के कारण कई बार पौधों में रोगों का पूर्वानुमान और उनका उपचार करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में बुआई से पहले किसान मृदा, बीजजनित रोग और भूमिगत कीट प्रबंधन पर ध्यान देकर फसलों को मिट्टी, बीज और जमीन के अंदर रहने वाले कीटों से होने वाले रोगों से बचा सकते हैं।
मृदा व बीजजनित रोग
कॉलर रॉट/जड़ गलन/तना गलन यह रोग मुख्यतः मूंगफली, तिल और टमाटर इत्यादि में होता है। रोग उत्पन्न करने वाले कारक मृदा में रहते हैं। यह रोग बीज व अंकुरित पौधों को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाता है, जिससे कि खेत में पौधों की संख्या में काफी कमी हो जाती है। ग्रसित बीज को मृदा से निकालकर देखने पर बीज पर काले कवक दिखाई देते हैं। नम मृदा में यह रोग अधिक होता है। इसमें जड़ों तथा भूमि के पास वाले तने के भाग पर आक्रमण होता है और अधिक संक्रमण होने पर पौधे अंत में सूख जाते हैं।
प्रबंधन
कॉलर रॉट से बचाव के लिए बीज को अधिक गहराई में न बोयें। गहरे बोये बीजों पर संक्रमण शीघ्र व अधिक होता है।
बचाव के लिए उचित फसल चक्र अपनाएं।
मूंगफली बीज को ट्राइकोडर्मा विरडी 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।
10 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा विरडी को 250 कि.ग्रा. पुरानी गोबर खाद में मिलाकर बुआई से 15 दिनों पूर्व खेत में मिलायें।
डायपफेनाकोनेजॉल 25 प्रतिशत ई.सी.1 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोपिकोनेजॉल 25 प्रतिशत ई.सी. 6-7 मि.ली. प्रति 10 लीटर या हेक्साकोनेजॉल 5 प्रतिशत ई.सी 3 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिड़कें।
उकठा रोग
यह फफूंद मृदाजनित रोग है। यह रोग कपास, मिर्च व बैंगन की फसल को किसी भी अवस्था में ग्रसित कर सकता है। रोगकारक फफूंद सर्वप्रथम पौधों की जड़ों में संक्रमण करती है व वाहक ऊतकों में घुस जाता है। पौधे की निचली पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं। बाद में सभी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं व अंत में पौधा मर जाता है।
इसके नियंत्रण के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।
गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करें।
अमोनियम नाइट्रेट की जगह पर पोटेशियम खाद का प्रयोग करें।
अरगट रोग
यह रोग मुख्यतः बाजरा व राई की फसल को ग्रसित करता है। इस रोग से ग्रसित बाजरे के सिट्ठे (पुष्प गुच्छ) पर संक्रमित पुष्पक (फ्रलोरेट्स) से हनीड्यू (शहद जैसा) क्रीमी-गुलाबी रंग का लसदार (म्युसीलेजिनियस) पदार्थ बाहर निकलता है। 10 से 15 दिनों के अंदर इसे लसदार पदार्थ की बूंदें सूखकर कठोर व काले रंग के स्केलेरोसिया के रूप में बीज की जगह पर बन जाती हैं। ये स्केलेरोसिया, बाजरे के दाने से बड़े व अनियमित आकार के होते हैं। बाजरे के सिट्ठे से दाने निकलते समय यह स्केलेरोसिया बीज में मिल जाता है। इसके रोगकारक (इनोकुलम) स्केलेरोसिया मृदा में या पौधे के अवशेषों में रहते हैं। एवं फसल के दूसरे मौसम में अंकुरित होकर एस्कस बनाते हैं। ये एस्कस बाजरे के सिट्टे को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रबंधन
बीज को बुआई से पूर्व नमक के 20 प्रतिशत घोल (यानी कि 200 ग्राम नमक और1 लीटर पानी) में लगभग 5 मिनट तक डुबोकर रखें। पानी में तैरते हुए हल्के बीज व कचरे को निकालकर जला दें। शेष बचे हुए बीज को साफ पानी में धोकर छाया में सुखा लें। उसके बाद बुआई के काम में लें।
आर्द्रगलन
यह रोग मुख्यतः पौधों की छोटी अवस्था में होता है, जो कि लगभग सभी सब्जियों मूंगफली, टमाटर, मिर्च और गोभी इत्यादि को ग्रसित करता है। खासकर नर्सरी में उगने वाले पौधों में ग्रसित पौधे की जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाते हैं तथा नन्हें पौधे गिरकर मर जाते हैं।
प्रबंधन
नर्सरी को आसपास की भूमि से 4-6 इंच ऊंचा रखें।
बीज को बुआई पूर्व थाइरम या कैप्टॉन 3 ग्राम /कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बोयें।
नर्सरी में बुआई पूर्व थाइरम या कैप्टॉन 3-4 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलायें।
रोग के लक्षण दिखाई देने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम/लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। जरुरत पड़ने पर दोबारा करें।
जड़ गलन
यह रोग मुख्य रूप से ग्वार में लगता है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर निम्न उपचार करें।
प्रबंधन
10 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा विरडी को 250 कि.ग्रा. पुरानी गोबर खाद में मिलाकर बुआई से 15 दिनों पूर्व खेत में मिलायें।
ट्राइकोडर्मा विरडी 4-5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित कर बुआई करें।
खड़ी फसलों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर छिड़कें। आवश्यकता अनुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर दोहरायें।
भूमिगत कीट
सफेद लट्ट
यह एक बहुभक्षी कीट है। यह खरीफ में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों जैसे कि बाजरा, ज्वार, गन्ना, मिर्च, भिंडी, बैंगन, मूंगफली एवं ग्वार आदि को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाता है।
क्षति
सफेद लट्ट रेशेदार जड़ों को खाकर नष्ट करते हैं एवं मूल जड़ के ऊपर गांठ बनाते हैं। इससे अंत में पौधे मर जाते हैं। सफेद लट्ट मृदा में 5-10 सें.मी. तक की गहराई में रहता है। रात में भृंग (वयस्क कीट) जमीन से बाहर निकल कर पत्ते को खाते हैं। अधिक संक्रमण से पौधे पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
जीवनकाल
जून में नये-नये सफेद लट्ट जमीन में बहुतायत में रहते हैं। जैसे ही वर्षा शुरू होती है ये सक्रिय हो जाते हैं। भृंग (वयस्क कीट) जमीन के अंदर 10 सें.मी. तक की गहराई में अंडे एक-एक कर देती है। अंडे से 7-10 दिनों में सफेद लट्ट निकलते हैं। ये 12 मि.मी. लंबे होते हैं। ये 8-10 सप्ताह में पूर्ण विकसित हो जाते हैं। पूर्ण विकसित सफेद लट्ट (ग्रब) अच्छी गहराई में जाकर प्यूपा में बदल जाते हैं। प्यूपा अर्धवृत्ताकार आकार के एवं सफेद क्रीम रंग के होते हैं। ये 15 दिनों के बाद भृंग (वयस्क कीट) में बदल जाते हैं। भृंग (वयस्क कीट) 10-20 सें.मी. तक की गहराई में रह सकता है और रात में जमीन से बाहर निकल कर पत्ते को खाता है। नवम्बर से लेकर जून तक भृंग (वयस्क कीट) जमीन के अंदर ही रहते हैं। ये पूरे वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी पूर्ण करते हैं। ये चना के अलावा मसूर, सोयाबीन व लोबिया को ग्रसित करते हैं। इसके अलावा भिंडी, मकई एवं टमाटर इत्यादि को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रबंधन
पौढ़/भृंग नियंत्रण
भृंग रात के समय जमीन से बाहर निकलकर परपोषी वृक्षों (खेजरी, बेर व नीम इत्यादि) पर बैठते हैं। ऐसे वृक्षों को छांट लें और दूसरे दिन कीटनाशक का छिड़काव करें।
पौढ़/भृंग को नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोपफॉस 36 घुलनशील द्रव्य या क्यूनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. की 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में या कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आसपास के परपोषी वृक्षों पर क्लोरोपाइरिफॉस 1-1.25 लीटर प्रति 500-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
डाउनी मिल्ड्यू
संक्रमण के परिणामस्वरूप लक्षण अक्सर भिन्न होते हैं। पत्तियों पर क्लोरिसिस के लक्षण नीचे से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियों पर क्लोरिसिस अधिक दिखाई देते हैं। संक्रमित क्लोरोटिक पत्ते वाले क्षेत्रों पर नीचे की सतह पर अलैंगिक स्पोर बनने में अधिक मदद करता है। आमतौर पर गंभीर रूप से संक्रमित पौधे पर विकास अवरूद्ध हो जाता है और पुष्प गुच्छ नहीं बनते हैं। बाजरे में ग्रीन ईयर के लक्षण फूलों का पत्तेदार संरचनाओं में परिवर्तन होने से होते हैं। इसके उस्पोर मृदा में 5 साल या इससे ज्यादा दिनों तक जीवित रहते हैं, जिससे कि फसल में प्रथम संक्रमण होता है। द्वितीय संक्रमण बरसात के दिनों में बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है।
प्रबंधन
इस रोग से बचाव के लिए बीज को मैटालेक्जिल 35 प्रतिशत डब्ल्यू.एस. 6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज या थाइरम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।
सफेद लट्ट नियंत्रण
मूंगफली
इसके लिए अरंडी नीम का केक 250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से मिलायें या कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत सी.जी. 33.3 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से खेतों में मिलायें।
बीजोपचार
बीज को क्लोरोपाइरीफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 2.5-12.5 मि.लीप्रति कि.ग्रा. बीज या क्लोरोपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. या क्यूनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 25 मि.ली. प्रति कि.ग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
बाजरा
प्रति कि.ग्रा बीज में 3 कि.ग्रा कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत या क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत कण मिलाकर बुआई करें।
मिर्च/बैंगन/भिंडी
खेतों में रोपाई से पूर्व कतारों में कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत या क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत कण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से दें। यदि दोबारा से कीट का प्रकोप हो तो 15 दिनों के अंतराल से पुनः छिड़काव करें।
गाजर
मूंगफली शलजम व शकरकंद के खेतों में गाजर की बुआई न करें। इससे सफेद लट्ट की समस्या बढ़ जाती है।
जिस खेत की मृदा में सफेद लट्ट की समस्या का इतिहास हो, वहां पर गाजर की बुआई न करें।
सफेद लट्ट की समस्या होने पर क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत या कार्बोफ्रयूरॉन 3 प्रतिशत प्रति हैक्टर की दर से बीजाई पूर्व खेत में डालें।
खड़ी फसलों में सफेद लट्ट नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरिफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 4 लीटर प्रति हैक्टर की दर से सिंचाई के पानी के साथ दें।
दीमक
यह कीट खरीफ फसलों मूंगफली, बाजरा एवं ग्वार की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाता है।
प्रबंधन
इसके लिए अरंडी या नीम का केक 250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से खेतों में मिलायें।
रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें।
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद ही खेत में डालें।
कार्बोफ्रयूरॉन 3 प्रतिशत सी.जी. 33.3 कि.ग्रा. या क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण भूमि में अंतिम जुताई के समय मिलायें।
रूट बग
यह कीट मुख्य रूप से बाजरा की जड़ को ग्रसित कर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसके अधिक संक्रमण से पौधे मर जाते हैं। इस कीट से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें।
प्रबंधन
इस कीट से बचाव के लिए क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण प्रति हैक्टर की दर से बुआई पूर्व खेत में अंतिम जुताई के समय मिलायें।
बीजोपचार
मूंगफली की बुआई से पूर्व इमिडाक्लोपरिड 17.8 प्रतिशत 2 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
फड़का
यह कीट कपास में अंकुरण के समय क्षति पहुंचाता है। इसके वयस्क व शिशु कीट दोनों ही अंकुरित कपास के पौधे को काटकर उसके पत्ते को खाते हैं। कपास के अलावा यह गन्ना, खरीफ चारा फसलों एवं बरसीम को भी ग्रसित करता है।
प्रबंधन
फेनवेलरेट 0.4 प्रितशत 25 कि.ग्रा. प्रित हैक्टर की दर से खेत में भुरकें।
कटवर्म या कातरा
यह बहुभक्षी भूमिगत कीट है, जो कि पौधे को जमीन की सतह से काटकर नष्ट कर देता है। इससे पौधे का शत-प्रतिशत नुकसान हो जाता है। यह फसल की शुरुआती अवस्था में ज्यादा सक्रिय होता है।
प्रबंधन
तम्बाकू व मकई के खेतों में गाजर की बुआई करने से बचें, क्योंकि इसके फसल अवशेष धीरे-धीरे नष्ट होने के कारण कटवर्म व वायर वर्म की आशंका अधिक हो जाती है।
वायर वर्म
वायर वर्म से प्रभावित क्षेत्रों में बीजों को क्यूनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 10 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
जड़ गांठ नेमाटोड
जड़ गांठ नेमाटोड छोटी मछली की तरह कीट हैं, जो कि मृदा में रहते हैं और पौधे की जड़ों को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनके संक्रमण से गाजर की जड़ विरूपित हो जाती है व इसका विकास रुक जाता है, जिससे कि गाजर ब्रिकी के योग्य नहीं रहती है। नेमाटोड के संक्रमण से दूसरे रोग उत्पन्न करने वाले कारक जैसे कि फ्रयूजेरियम, पिथियम व जीवाणु इरिविनिया आदि गाजर जड़ को संक्रमण करने में सहायक साबित होते हैं। मृदा की जांच द्वारा नेमाटोड की संखया व प्रकार के बारे में पता लगाया जा सकता है। अपने खेतों में नेमाटोड की संख्या व प्रकार के बारे में पता लगाने का सही समय जुलाई, अगस्त या सितंबर महीना है। यह वर्तमान फसल पर निर्भर करता है। ग्रसित फसलों के खेतों में नेमाटोड की अधिकतम संख्या फसल परिपक्वता के समय रहती है।
प्रबंधन
ग्रसित जड़ों को जहां तक हो सके जमीन से निकाल कर जला दें।
गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें और कड़ी धूप में सूखने के लिए खुला छोड़ दें।
नीम की खली 6-7 कि.ग्रा. अथवा 6-7 क्विंटल प्रति बीघा की दर से प्रयोग करने पर भी इस रोग से बचा जा सकता है।
नमोटाडे के नियंत्रण के लिए एल्डीकार्ब या कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत सी.जी. प्रति बीघा की दर से बीजाई के 1 सप्ताह पूर्व खेत में डालें।
स्त्रोत : खेती पत्रिका, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर), लेखक: सुनील कुमार और बजरंग लाल ओला,विषय वस्तु विशेषज्ञ (पौध संरक्षण), भगवत सिंह राठौड़ वरिष्ठ वैज्ञानिक सह अध्यक्ष (सस्य विज्ञान) कृषि विज्ञान केन्द्र (सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर) गूंता-बानसूर, अलवर-301402 (राजस्थान), और पी.के. राय, निदेशक, भाकृअनुप-सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर (राजस्थान)।