नई दिल्ली। चुम्बक का उपयोग करके जल से हाइड्रोजन उत्पादन की नई विधि ने ऊर्जा-दक्षता के साथ ईंधन निर्माण का नया मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजन निर्माण का एक अभिनव तरीका प्रस्तुत किया है, जो इसके उत्पादन को तीन गुना बढ़ाता है और आवश्यक ऊर्जा खपत को कम करता है। यह कम लागत पर पर्यावरण के अनुकूल हाइड्रोजन ईंधन निर्माण की दिशा में नया मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
एक ईंधन के रूप में, हाइड्रोजन को एक हरित एवं टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। कोयला और गैसोलीन जैसे गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तुलना में लगभग 3 गुना अधिक कैलोरी मान होने के अलावा, ऊर्जा को मुक्त करने के लिए हाइड्रोजन के दहन से पानी उत्पन्न होता है और इस प्रकार से यह पूरी तरह गैर-प्रदूषणकारी ईंधन है। पृथ्वी के वायुमंडल (350 पीपीबीवी) में आणविक हाइड्रोजन की बेहद कम प्रचुरता के कारण, पानी का विद्युत-क्षेत्र चालित विघटन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए एक बेहतर तरीका है। हालांकि, ऐसे इलेक्ट्रोलिसिस के लिए उच्च ऊर्जा इनपुट की आवश्यकता होती है और यह हाइड्रोजन उत्पादन की धीमी दर से जुड़ा होता है। महंगे प्लैटिनम तथा इरिडियम आधारित उत्प्रेरक का उपयोग भी इसे व्यापक प्रसार व्यावसायीकरण करने से रोकता है। यही कारण है कि, ‘हरित-हाइड्रोजन-अर्थव्यवस्था’ के लिए परिवर्तन ऐसे ही उपायों की मांग करता है, जो ऊर्जा लागत और सामग्री लागत को कम करते हैं और साथ ही साथ हाइड्रोजन उत्पादन दर को बेहतर बनाते हैं।
प्रो. सी. सुब्रमण्यम के नेतृत्व में आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं का एक दल एक अभिनव प्रणाली लेकर सामने आया है, जो इन सभी चुनौतियों का व्यवहारिक समाधान प्रदान करता है। इसमें बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में पानी का इलेक्ट्रोलिसिस शामिल है। इस पद्धति में वही प्रणाली इस्तेमाल की गई है, जो 1 मिलीलीटर हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करती है, ठीक उसी समय में 3 मिलीलीटर हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 19% कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह परिणाम उत्प्रेरक पर विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों को सहक्रियात्मक रूप से जोड़कर प्राप्त किया जाता है।
एक आसान पद्धति किसी भी मौजूदा इलेक्ट्रोलाइज़र (जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में पानी को तोड़ने के लिए विद्युत का उपयोग करता है) को बाहरी मैग्नेट के साथ डिजाइन में किसी बड़े परिवर्तन के बिना ही वापस लेने की क्षमता प्रदान करती है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि होती है। हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए यह प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट प्रदर्शन एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुआ है।
इलेक्ट्रोकैटलिटिक पदार्थ- कोबाल्ट-ऑक्साइड नैनोक्यूब जो हार्ड-कार्बन आधारित नैनोस्ट्रक्चर्ड कार्बन फ्लोरेट्स पर फैले हुए हैं, इस प्रभाव को प्राप्त करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और इसे प्रौद्योगिकी मिशन डिवीजन में ऊर्जा भंडारण कार्यक्रम के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की सामग्री के सहयोग से विकसित किया गया था। इसे डीएसटी-एसईआरबी अनुदान के माध्यम से मैग्नेटो-इलेक्ट्रोकैटलिसिस के लिए उपयोग में लाया गया था।
कार्बन और कोबाल्ट ऑक्साइड के बीच का इंटरफेस मैग्नेटो-इलेक्ट्रोकैटलिसिस की कुंजी है। यह काफी लाभदायक है क्योंकि इससे एक ऐसी प्रणाली बनती है जिसमें बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है और इसमें लंबे समय तक चुंबकत्व को बनाए रखने की क्षमता निहित होती है; प्राप्त हुए परिणाम (वर्तमान घनत्व में 650% की वृद्धि, आवश्यक ऊर्जा की 19% कमी और वॉल्यूमेट्रिक हाइड्रोजन उत्पादन दर में 3 गुना वृद्धि) अद्वितीय हैं, इसके लिए आवश्यक आंतरायिक चुंबकीय क्षेत्र एक फ्रिज चुंबक ही प्रदान कर सकता है। इस तरीके को मौजूदा इलेक्ट्रोलाइज़र में सीधे डिज़ाइन या संचालन के तरीके में बदलाव के बिना ही इस्तेमाल किया जा सकता है और 10 मिनट के लिए चुंबकीय क्षेत्र का एक बार एक्सपोजर 45 मिनट से अधिक हाइड्रोजन उत्पादन की उच्च दर प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है।
प्रो. सुब्रमण्यम बताते हैं कि, “बाहरी चुंबकीय क्षेत्र का आंतरायिक उपयोग ऊर्जा कुशल हाइड्रोजन उत्पादन प्राप्त करने के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अन्य उत्प्रेरकों का भी पता लगाया जा सकता है।” विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से वित्त सहायता प्राप्त जयता साहा और रानादेब बल ने कहा कि, “उत्प्रेरकों को बदलकर तथा चुंबकीय क्षेत्र की आपूर्ति करके 0.5 एनएम3/एच क्षमता के एक बुनियादी इलेक्ट्रोलाइजर सेल को तुरंत 1.5 एनएम3/एच क्षमता में अपग्रेड किया जा सकता है।”
यह दर्शाने के बाद कि, विधि बहुत जटिल नहीं है, टीम अब टीआरएल स्तर को बढ़ाने तथा इसके सफल व्यावसायीकरण को सुनिश्चित करने के लिए एक औद्योगिक भागीदार के साथ मिलकर काम कर रही है।
प्रो. सुब्रमण्यम बताते हैं कि, “हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था के महत्व को देखते हुए, हमारा लक्ष्य परियोजना को मिशन-मोड में लागू करना और स्वदेशी भरोसेमंद मैग्नेटो-इलेक्ट्रोलाइटिक हाइड्रोजन जनरेटर को तैयार करना है।” उन्होंने कहा कि, यदि उनके प्रयास सफल होते हैं, तो हम भविष्य में पर्यावरण के अनुकूल ईंधन, हाइड्रोजन, पेट्रोलियम, डीजल और संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) की जगह ले सकते हैं।