मंडार–कालन्द्री। कुमा गांव पांडवकालीन कृमावती नगरी के रूप में जाना जाता था, यहाँ स्वयंभू शिवलिंग तथा शिवलिंग पर रखा बाण पांडवकालीन एवं साथ ही हजारों साल प्राचीन बताया गया हैं।
वही मंडार क़स्बे में स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर में श्रावण मास के प्रथम दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक किया गया। आज सुबह से ही भक्तों की रेलमपेल लगातार जारी रही।
क़स्बे में स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर में भी स्वयंभू 84 फीट शिवलिंग(शिलारूपी) हैं। जो पूरे हिंदुस्तान में कही नहीं हैं। यह लीलाधारी का मंदिर पहाड़ी पर अवस्थित हैं।
वही कालंद्री के निकट के कुमा गांव स्थित जिले के प्रसिद्ध व प्राचीन शिवालयों मे शुमार पातालेश्वर महादेव मंदिर में श्रावण मास के पहले दिन प्रसिद्ध ज्योतिष व संस्कृत के विद्वान पंडित घनश्याम श्रीमाली कालन्द्री के सानिध्य व पुजारी भंवरलाल वैष्णव की मौजूदगी मे महादेव की विशेष पूजा अर्चना के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक किया गया।
श्रीमाली ने बताया की श्रावण मास में पातालेश्वर महादेव के सभी को दर्शन करना चाहिए तथा उक्त पातालेश्वर धाम को जिले के सबसे प्राचीन शिव मंदिरो में से एक बताया।
साथ ही बताया कि कुमा-दर्शन यानी काशी दर्शन के बराबर है। ऐसी मान्यता और धारणा बताते हुए उक्त शिवलिंग स्वयंभू,स्वयं स्थापित होना तथा शिवलिंग पर रखा बाण पांडवकालीन बताया साथ ही हजारों साल प्राचीन बताया तथा कुमा गांव को पांडवकालीन कृमावती नगरी के रूप में जाना जाता था।
पातालेश्वर महादेव के परम भक्त वलदरा गांव के सुरेश पुरोहित ने बताया की प्रकृति की गोद में बसा शिवालय मंदिर के आगे बडे बडे खजूर के पेड उसकी सुन्दरता के चार चांद लगा रहे हैं।
मंदिर के आगे नदी मे आज दिन तक पानी कभी सुखा नही है, भंयकर अकाल के समय में भी जल अवश्य मौजूद रहता है।
गीरीश देवासी ने बताया की कालन्द्री से करीब 10 किलोमीटर व वलदरा गाँव से करीब पांच किलोमीटर दूर ग्रेवल मार्ग से कुमा गांव इस शिव मंदिर पहुंचा जा सकता हैं। कुमा गांव एवं शिव मंदिर वाक़ई साधना भक्ति भावना की तपोभूमि है।
कालंद्री से हमारे विशेष संवाददाता सुरेश पुरोहित’जुगनू’की खास रिपोर्ट।