नई दिल्ली। राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान मनरेगा श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर केन्द्र सरकार का ध्यान आकर्षण करवाते हुए श्रमिकों के हित में कदम उठाने हेतु आवाज उठाई। राज्यसभा सत्र के दौरान लोकमहत्व के विषय पर विशेष उल्लेख के जरिए कहा कि समाजसेवी संस्थाओं और विभिन्न श्रमिकों संगठनों के अथक प्रयास एवं निरंतर संघर्ष के बाद केंद्रीय सरकार द्वारा एक अधिनियम यानी बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण अधिनियम उपकर 1996 में पारित किया गया था। ताकि देश में करोड़ों बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के लिए स्वास्थ्य और कल्याण के उपायों के साथ उनके रोजगार और सेवा की शर्तों को विनियमित किया जा सके एवं सुरक्षा प्रदान की जा सके।
केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के कल्याण बोर्डों का गठन करने के लिए निर्देशित किया गया था। इन दो अधिनियमों के विभिन्न प्रावधानों का क्रियान्वयन विशेष रूप से श्रमिकों के लाभार्थियों के रूप में पंजीकरण से संबंधित है। उपकर और बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के कल्याण के लिए इसका उपयोग राज्य सरकार और राज्य निर्माण और अन्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण बोर्ड की जिम्मेदारी है।
राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने कहा कि निर्माण श्रमिक, जिन्होंने वर्ष में 90 दिन काम किया है, उन्हें निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड में पंजीकृत किया जा सकता है। ये कल्याण बोर्ड एक लाभार्थी, जो कि बोर्ड के साथ पंजीकृत है उसको दुर्घटना के मामले में तत्काल सहायता प्रदान करता हैं। पेंशन का भुगतान देता है एवं निर्माण श्रमिकों के बेटे/बेटी की शादी के लिए वित्तीय सहायता देता है साथ ही पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के दो बच्चों को छात्रवृत्ति भी देता है।
राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने कहा कि बहुत कम प्रतिशत में निर्माण श्रमिक विभिन्न कल्याण बोर्डों के साथ लाभार्थी के रूप में पंजीकृत हैं। इसी प्रकार बड़ी संख्या में राज्यों में निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए धन के उपयोग का प्रतिशत भी बहुत कम रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2012 के अपने आदेश की विवेचना की और विशिष्ट निर्देश जारी किए जिसमें केंद्र सरकार को बोर्ड अधिनियम 1996 की धारा 60 के साथ-साथ उपकर अधिनियम 1996 के अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उचित निर्देश जारी करने को कहा।
राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने कहा कि निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के साथ निर्माण श्रमिकों के कम पंजीकरण को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय सरकार ने सभी राज्य सरकारों को मनरेगा श्रमिकों के पंजीकरण के लिए विशेष अभियान शुरू करने का निर्देश दिया। जिन मनरेगा श्रमिकों ने एक वर्ष में 90 दिन का काम पूरा किया है। बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (बीओसीडब्ल्यू) अधिनियम के तहत स्व-प्रमाणित जैसी सरल प्रक्रिया या पंचायतों द्वारा वेरिफिकेशन आदि के आधार पर बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के कल्याण बोर्डों में श्रमिकों का पंजीकरण किया जावे। इन निर्देशों के बाद लाखों मनरेगा श्रमिकों को विभिन्न निर्माण कल्याण बोर्डों के साथ पंजीकृत किया गया और उन्हें वित्तीय लाभ दिया गया।
वर्ष 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ, बीजेपी की सरकार सत्ता में आई। भाजपा सरकार ने पहले मनरेगा पर हमला किया और कहा कि यह योजना बेकार है और यह स्थाई संपत्ति नहीं बना रही है और भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। लेकिन मनरेगा एक अधिनियम बन चुका है। उन्होंने इस योजना के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं करा कर मनरेगा को कमजोर करना शुरू कर दिया। कई बार उन्होंने सीमेंट, रेत आदि जैसे सामान के लिए पैसा रोका और कुछ समय के लिए उन्होंने मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी के लिए भी पैसा जारी नहीं किया। आखिर 10 फरवरी 2017 को भाजपानीत केन्द्रीय सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में निर्माण कल्याण बोर्ड द्वारा दी गई समाज कल्याण योजना को छीन लिया गया है। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने भारत सरकार के 10 फरवरी 2017 के अपने पत्र में लिखा है – मनरेगा श्रमिकों के पंजीकरण के संदर्भ में मंत्रालय द्वारा पत्र जारी किए गए हैं
(बीओसीडब्ल्यू) अधिनियम के तहत आवेदकों द्वारा स्व प्रमाणीकरण या पंचायत द्वारा प्रमाणीकरण आदि जैसी सरल प्रक्रिया के आधार पर जो मनरेगा के तहत एक वर्ष में 90 दिन का काम पूरा कर चुके हैं। बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स अधिनियम 1996 के तहत लाभार्थी के रूप में मनरेगा श्रमिकों के पंजीकरण के मुद्दे को मंत्रालय में फिर से जांच की गई है और इन निर्देशों को वापस लेने का निर्णय लिया गया है। अब केन्द्रीय सरकार के इन निर्देशों को वापस लेने के बाद मनरेगा के लाखों श्रमिक जिनमें से अधिकांश वंचित एवं महिलाएं हैं। उन्हें अपने बच्चों को चिकित्सा सहायता नहीं मिलेगी एवं अपने बेटे या बेटी की शादी के लिए पैसा नहीं मिलेगा और उनके घर की मरम्मत के लिए धन आदि कल्याण बोर्ड से एवं अन्य मौद्रिक सहायता नहीं मिलेगी। हम भाजपा सरकार के इस गलत फैसले की कड़ी निंदा करते है और केंद्रीय सरकार से इस 10 फरवरी 2017 के पत्र को वापस लेने राज्य सरकार को बोर्ड अधिनियम 1996 के रूप में मनरेगा श्रमिकों को पंजीकृत करने हेतु निर्देशित करने की अपील करते है।
डांगी ने कहा कि जहां सम्पूर्ण देश में वित्तीय वर्ष 2019-20 में, लगभग 13 करोड़ श्रमिकों ने मनरेगा योजना के तहत काम कर रोजगार का लाभ उठाया। वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार में इस वित्तिय वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों की संख्या 49.52 लाख है जो कि पूरे देश में सर्वाधिक है। मैन-डेज जनरेशन और 100 दिन पूरे करने वाले व्यक्तियों की संख्या के संदर्भ में भी यह उपलब्धि योजना की शुरुआत के बाद से सबसे अधिक है।