मंडार। सो जाते है फुटपाथ पर अखबार बिछाकर, मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते.. प्रसिद्ध गजलकार दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां मेहनतकशों की जिंदगी पर सटीक बैठती है।
इस दुनिया में दोस्तों कई परिवार अपनी रोजी रोटी के लिए यह यायावर की जिंदगी भी जीते हैं। पूरे हिंदुस्तान में ऐसे दर्जनों श्रमिक परिवार अपने गांव से दूर मेहनत की जिंदगी बसर कर रहे हैं।
मेरे गांव मंडार के लीलाधारी महादेवजी मंदिर के पीछे राजस्थान के कोटा जिले से आया एक परिवार रुका हुआ था। इस परिवार के मुखिया की बीमारी के कारण स्थिति खराब हैं। इसलिए परिवार का भरण पोषण महिला का भाई एवं बच्चों का मामा करता हैं। वह मामा गांवों में बहुरूपिया का भेष बनाकर जीवन यापन करता हैं। आज के डिजिटल युग में बहुरूपिया भेष का कोई जमाना नहीं रहा और नहीं इससे कोई विशेष आय होती हैं। इस गरीब परिवार की हालत को देखकर सामाजिक कार्यकर्ता हितेश जैन ने संवेदना व्यक्त की एवं मंडार सरपंच परबत सिंह देवड़ा के भाई एवं सामाजिक कार्यकर्ता दशरत सिंह देवड़ा को जानकारी दी जिस पर उन्होंने संवेदनशीलता दिखाते हुए, मानवीय मूल्यों को नजर में रखते हुए अपने छोटे भाई अर्जुन सिंह देवड़ा के हाथों इस गरीब जरूरतमंद परिवार को करीब एक माह का राशन उपलब्ध कराया।
मानव वह नहीं जिसके पास मानव शरीर है, मानव वह है, जिसमें सुंदर मानवता हैं, संवेदना है, दूसरों के दुखों को समझने की मानवीय क्षमता हैं। इन बहुरूपिया कलाकार हेतु सरकार को भी कोई सहायता करनी चाहिए। ताकि बहुरूपिया कला का संरक्षण हो एवं यह कला लुप्त न हो। सरकारी सहायता के सवाल पर कलाकार ने मस्ती के मूड में फिल्मी गीत गुनगनाया हम मेहनतकश इस दुनिया में जब अपना हिस्सा मांगेगे, इक खेत नहीं, एक बाग नहीं, हम सारी दुनिया मांगेगे…।